फिलस्तीन की चिंता है अफगानिस्तान की क्यों नहीं ?

अंग्रेजी में एक कहावत है कि हिप्पोक्रेसी इज ए टरीब्युट व्हिच कीप गिविंग टाइम टू टाइम। यानि पाखंड एक श्रद्धांजली है जिसे समय समय देते रहिये। इसी साल की बात है तारीख थी 16 मई फिलिस्तीन को लेकर 57 सदस्यीय इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी ने आतंकी संगठन हमास के खिलाफ इजरायल की कार्रवाई की निंदा करते हुए एक संयुक्त बयान जारी किया था। जिसमें कहा गया था इजरायल बेगुनाह फिलिस्तीनियों की जानें लेना बंद करे।

जबकि लड़ाई फलस्तीनी आतंकी संगठन हमास और संप्रभु राष्ट्र इसराइल के बीच थी। लेकिन फिर भी 16 मई को ही अमेरिका में इस्लाम समर्थको ने गाजा पट्टी पर इसराइली हवाई हमले खत्म करने की मांग को लेकर लोस एंजिलिस बोस्टन फिलाडेल्फिया समेत कई अन्य अमेरिकी शहरों में प्रदर्शन किये। हजारों लोगों ने फलस्तीन आजाद करों और इन्तिफादा विद्रोह कायम रहे के पोस्टर पकड रखे थे। अब पिछले एक महीने से अफगानिस्तान में तालिबानी आतंकी कहर मचा रहे है लेकिन कोई विरोध का पोस्टर कहीं चिपका दिखाई नहीं दे रहा है। जो इमरान खान आँखों में मगरमच्छ के आंसू लेकर कह रहा था वी स्टेंड विद गाजा वी स्टेंड विद फलस्तीन अब उसका ट्विटर अकाउंट खामोश है। बल्कि वह खुलेआम अफगान सरकार को धमकी दे रहा है अगर तालिबान के खिलाफ हवाई हमले किये तो हम चुप नहीं बैठेंगे।

जबकि इसी वर्ष 28 मई को खबर आई थी कि गाजा पर हवाई हमले को लेकर तुर्की और पाकिस्तान इजरायल के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को लामबंद करने में जुट गये है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी संयुक्त राष्ट्र संघ की आमसभा में इस मुद्दे पर समर्थन जुटाने के लिए तुर्की रवाना हो गये। पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने इस बीच अपने देशवासियों से भी एक अपील भी करी थी कि बड़े बड़े प्रदर्शन करो सेव गाजा सेव फलिस्तीन के पोस्टर लहराओ।

लेकिन अब काबुल पर मचे कहर और 27 अफगानी बच्चों की मौत किसी को दिखाई नहीं दे रही है। इससे साफ पता चलता है कि अगर मुसलमान पर गैर मुसलमान हमला करें तो उस पर वामपंथियों और इस्लामिक लोगों का शोर मचाना जरुरी होना चाहिए। इसके अलावा जब मुस्लिम गैर मुस्लिम पर हमला करें उसे जिहाद कहना चाहिए लेकिन जब कोई तालिबान काबुल पर हमला करे, या जब कोई आईएसआईएस सीरिया या इराक में तबाही मचाये उस पर खामोश हो जाना चाहिए। मसलन गाजा पर रोना चाहिए काबुल पर हँसना चाहिए आज यही सब हो भी रहा है।

हमास पर हमले के वक्त दिल्ली कॉन्ग्रेस के वीपी अली मेहदी ने यहूदी राष्ट्र के प्रति इजरायल के विनाश की कामना करते हुए ट्विटर पर कहा था अल्लाह इजरायल को नष्ट कर देगा इंशाल्लाह अल्ला हु अकबर। असदुद्दीन ओवैसी ने भी एक वीडियो को साझा करते हुए कहा था कि फिलिस्तीन को तब कोई रक्षक नहीं चाहिए जब उनके पास अल्लाह हों। और ट्वीट करते हुए लिखा हमको किसी मुमालिक या बादशाह की जरूरत नहीं है फिलीस्तीन के लिए, हमारा अल्लाह हमारे लिए काफी है। इसके बाद कॉन्ग्रेस नेता सलमान निजामी ने भी फिलिस्तीन को बचाने के नारे लगाने लगे और एक हवाई हमले का वीडियो साझा करते हुए, ट्वीट किया था कि उनका खून इजरायल के हाथों में लगा है, हम नहीं भूलेंगे! सेव फलिस्तीन।

जब इसराइल के खिलाफ करने कहने को कुछ नहीं मिला तो कोई शरजील उस्मानी सामने आया लोगों को प्यूमा और एचपी जैसे ब्रांडों का बहिष्कार करने के लिए कहने लगा। और कैटरपिलर बुलडोजर पर प्रतिबंध लगाने मांग भी क्योंकि क्योंकि इसका उपयोग फिलिस्तीनी घरों और खेतों के विध्वंस के लिए किया जाता है। बात यहाँ बनी तो उस्मानी डेथ टू ऑक्यूपेशन अभियान में भी शामिल हो गया जो कश्मीर और फिलिस्तीन में विदेशी कब्जे से मुक्ति के लिए कहता है।

सिर्फ इतना ही नहीं फिल्म अभिनेत्री स्वरा भास्कर भी सामने आई और अपने ट्वीट में इजरायल को लानते भेजी। इसके बाद भारत के चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत होने का दावा करने वाली टीपू सुल्तान पार्टी ने अपना ज्ञान फेंकते हुए कहा कि कुछ दशकों पहले तक इज़राइल एक राष्ट्र के रूप में मौजूद नहीं था और ट्विटर पर बाय कोट इसराइल अभियान चलाने लग गया। अब कोई इस टीपू सुल्तान पार्टी से पूछे कि कुछ दशकों पहले तक तो पाकिस्तान और बांग्लादेश भी नहीं थे कभी ट्विटर पर बायकाट पाकिस्तान या बांग्लादेश का भी अभियान चलाया क्या?

यानि अब आप समझिए की दो घटनाएं होती हैं एक घटना आतंकी संगठन हमास और इजराइल के बीच उसे लेकर सोशल मीडिया पर ऐसा हौव्वा बनाया जाता है कि मानो इजराइल इस संसार को तबाह कर रहा है और लोकतंत्र की हत्या कर रहा है। तो वहीं दूसरी तरफ अफगानिस्तान की राजधानी काबुल में एक के बाद एक विस्फोट जिनमें बच्चें महिलाये और ज्यादातर स्कूल की लड़कियां मारी जाती है। एक आतंकी संगठन पूरी दुनिया के सामने एक लोकतान्त्रिक सरकार को चुनोती देता है। लेकिन दोगलेपन के जहर से पीड़ित मजहबी मीडिया नक्सली वामपंथी लिबरल बुद्धिजीवियों के मुंह से कट्टरपंथी सुन्नी संगठन की आलोचना में शब्द नहीं निकलते। दुनिया का तमाम मीडिया तालिबान की हिंसा को ऐसे पेश कर रहा है जैसे वह दुनिया को नई चेतना नया लोकतंत्र और संविधान देने वाला हो।

अब खबर चलाई जा रही है क्या जीत जायेगा तालिबान, या अफ़ग़ानिस्तानः लश्कर गाह में भीषण जंग, क्या तालिबान को मिलेगी अहम जीत? खबर है अफ़ग़ानिस्तान के हेलमंद प्रांत में तालिबान और अफ़ग़ान सेना के बीच लड़ाई तेज़ हो गई है। तालिबान हेलमंद प्रांत की राजधानी लश्कर गाह में दाखिल हो चुके हैं, जहां उन्होंने सरकारी रेडियो और टेलीविज़न के प्रांतीय कार्यालय पर क़ब्ज़ा कर लिया है और 20 साल बाद यहां अपना प्रसारण शुरू कर दिया है।

अफ़ग़ान तालिबान के मुख्य प्रवक्ता ज़बीहुल्ला मुजाहिद ने शनिवार को अपने ट्विटर अकाउंट पर दावा किया था कि अफ़ग़ान सेना ने भारत सरकार की तरफ से मुहैय्या कराये गए लड़ाकू विमानों से लश्कर गाह के एक बड़े अस्पताल को निशाना बनाया है।

अब आप सोच रहे होंगे कि तालिबान के मुख्य प्रवक्ता ज़बीहुल्ला मुजाहिद और ट्विटर पर क्या आतंकी भी ट्विटर पर हो सकते है? बिलकुल तालिबान ट्विटर पर हो सकता है लेकिन ये ट्विटर ट्रम्प ट्रंप का अकाउंट स्थायी रूप निलंबित ये कहकर कर देता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प नफरत फैला रहे है। इनके अनुसार माने तो ट्रम्प नफरत फैलाते है तो ट्विटर से हटाये जाते है लेकिन तालिबान पिछले 25 सालों से अफगानिस्तान में प्यार बाँट रहा है, अफगनियों की बम बंदूकों मोट्रार दाग दाग कर सेवा कर रहा है उसे ट्विटर पर जरुर होने चाहिए इससे इस्लाम मजबूत होगा और भाई चारा फैलेगा।

शायद इसके लिए गाइड लाइन ये है कि फलिस्तीनी आतंकी संगठन हमास पर हमला होगा तो ट्विटर चिल्लाएगा। दुनिया को मुस्लिमों की बेबसी की झूठी तस्वीर परोसेगा लेकिन काबुल में हिंसा होगी बम विस्फोट होंगे तो बरसाती मेंढक की तरह पानी में गोता लगा जायेगा। क्योंकि मुसलमान मुसलमान को मारेगा तो इस्लाम जिन्दा रहेगा लेकिन जब कोई इसराइल हमास पर हमला करेगा या किसी देश की सेना आतंकी बुरहान वानी को मारेगी तो उस सेना का अध्यक्ष गली का गुंडा हो जायेगा। यही साधारण सी नीति है ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत ही नहीं पढ़ी लिखी दुनिया में एजेंडा साफ़ है लेकिन फिर भी लोग इन दिहाड़ी अख़बारों नेताओं और पत्रकारों के गैंग की अफवाहों में बह जाते है।

BY RAJEEV CHOUDHARY

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