आस्था की आड़ में पाखंडियों का बिगुल है आदिपुरुस ?

जब धर्म पर पाखंडी और धार्मिक व्यापारी कब्ज़ा कर ले तो किसी आदिपुरुस मूवी का बन जाना महज कोई संयोग नहीं है, बल्कि एक प्रयोग है। कथित राष्ट्रवाद के ठेकेदार, धर्म का लिहाफ ओढ़कर प्रजा को नित्य नये मनोरजन में लीन रखते है। अब सुना है कि आदिपुरुष मूवी  सिनेमाघरों में आने के बाद विवादों में हैं, फिल्म को लेकर देशभर में कई संगठनों से विरोध का भी सामना करना पड़ा तो अब  फिल्म कानूनी विवादों का भी सामना कर रही है, इस फिल्म की पूरी टीम पर लखनऊ में एफआईआर तक दर्ज कराई गई है।

बताया जा रहा है कि इस मूवी में फूहड़ डायलॉग कथित राष्ट्रवादी लेखक और सरकारी चारण मनोज मुंतशिर शुक्ला ने लिखे है। सोच रहा हूँ, अगर राही मासूम रजा ये फूहड़ डायलॉग लिख देता तो शायद अभी तक गोदी मीडिया संसद से धर्मदंड उठाकर कब की सजा दे चुकी होती। लेकिन राही मासूम रजा भारतीय आस्था तल को समझते थे। उन्होंने महाकाव्य महाभारत पर आधारित सीरियल महाभारत के जो संवाद लिखे, वो आज भी अपनी भाषा शैली के लिए अमर है।

कहा जा रहा है कि जो टपोरी टाइप लहजे में आदिपुरुस मूवी में डायलॉग डिलीवरी हुई, उससे उन तमाम लोगों की भावना आहत हुई है, जिनकी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी के प्रति अगाध श्रद्धा है। लेकिन सवाल है कि क्या आहत भावना का खेल पहली बार हुआ है? ये सवाल इस कारण उठा रहा हूँ क्योंकि अभी जून का महीना है। तीन-चार महीने बाद दशहरा आएगा, उसमें देशभर में रामलीला का मंचन होगा। गांवों और कस्बों की रामलीला में भोजपुरी फिल्मों के अश्लील गानों और डायलॉग पर थिरक रही नर्तकियों पर यही कथित आस्थावान लोग लहालोट होते नजर आयेंगे जो आज आदिपुरुष फिल्म के कपड़े से लेकर संवाद तक पर सवाल उठा रहे हैं।

अब मूवी के विरोध के अपने प्रपंच हो सकते है। लेकिन आदिपुरुस मूवी संवाद के लिहाज से इसे हम सिनेमाघरों में चलने वाली रामलीला कह सकते है। वो रामलीला जिसे मेकर्स ने वीएफएक्स में बदल दिया हो।  सिर्फ रामलीला ही नहीं अब तो अश्लील गाने, भोंडे नाच यानि देश भर में धर्म के नाम पर हर रोज साईं संध्या, भगवती जागरण, माता की चौकी, संतोषी जागरण और भी अनेकों माध्यमों मनोरंजन का जुगाड़ बन चुके है। धार्मिक आस्था के नाम पर मनोरंजन का ये जुगाड़ करने वाले कोई और नहीं खुद को धार्मिक कहने वाले लोग ही हैं।

ये ही लोग है जिन्होंने योगिराज श्रीकृष्ण जी को तो चूड़ी बेचने वाला, रसिया साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। भगवान शिवजी जैसे महान तपस्वी, ध्यानी को नशेडी और माता पार्वती को भांग रगड़ने वाली बना डाला। जो लोग आज विरोध कर रहे अभी कावड आने दो यही लोग भगवान शिव पर अश्लील और भद्दे गाने बनाकर नशे में झूमते तक नजर आयेंगे। पता आज कैसे और किस मुंह से ये लोग विरोध कर रहे है?

दरअसल, यह एक धर्म के मनोरंजन के खेल का एक पवित्र हिस्सा है, जिसमें काल्पनिक धार्मिक कहानियाँ है। देवी देवता है, भजन है, कीर्तन है, वैसे तो इस खेल में अमीर गरीब दोनों हैं। लेकिन गरीब क्लब नहीं जा सकते, तो गरीबों के लिए शोभायात्रा है। तलवार, भाले छुरियों लहराने प्रबंध है। सड़क पर धर्म के गीत बजाकर इनको नचाकर धार्मिक शक्ति का प्रदर्शन किया जाता है। इन्हें बताया जाता है यही धर्म का मूल तत्व है बाकि ध्यान, साधना मुक्ति मोक्ष मानवता तो डरपोक लोगों का काम है।

इस धार्मिक मनोरंजन खेल के एक नियम हैं, जिसमें लोगों के विवेक पर कब्ज़ा किया जाता है। उनकी सोच को बंधक बना लिया जाता है। जिसके पास जितनी संख्या में बंधक हैं वही उतना बड़ा विजेता है। इस खेल के दर्शक देश की मीडिया और बड़े नेता हैं। पर्दे के पीछे तालियां और शाबासी है। बेशक इस खेल में बड़े लोग वोट और नोट कमाते हो किन्तु भीड़ के हिस्से कभी प्रसाद कभी विरोध, लाठियां और आंसू ही आते हैं।

भले ही लोग आज आदिपुरुस का विरोध करें लेकिन मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी का वास्तविक चरित्र तो इन धर्म के ठेकेदारों ने कब का समाप्त कर दिया है। वे श्रीराम अब कहाँ है? जो अपने पिता के वचनों के कारण मर्यादित महापुरुष पुत्र ने अपना राजपाट त्यागकर वनों में विचरण किया। हालात कैसे भी रहे लेकिन मर्यादा का पाठ नहीं भूले।

अब वो राम कहाँ है? अब तो उनके नाम पर अश्लील रामलीलाओं का मंचन है। इसके अलावा रामनवमी जुलूस में आस्था, श्रद्धा और भक्ति के प्रदर्शन की जगह राजनैतिक ताकत का प्रदर्शन होता है। जिसमें पिछले कुछ सालों में देश में कई जगह हुई हिंसा तक होती है। तब समझ नहीं आता कि उत्सव रामनवमी का होता है या राजनीति का?

असल में भगवान श्रीराम जी आड़ में पिछले कुछ वर्षों में इतना कुछ हो चूका है। जिसे देखकर अब मुझे आदिपुरुस मूवी पर जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ। क्योंकि कथित धार्मिक गुरु घंटालों, राजनेताओं ने पिछले कुछ वर्षों में श्रीराम जी का वास्तविक चरित्र नष्ट करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ी। जिसके बदले इन लोगों जो राम जी की नई तस्वीर गढ़ी, जिसमें महाराज दशरथ के वो आज्ञाकारी पुत्र श्रीराम नहीं है। ना इसमें मर्यादा है, ना भक्ति है, ना आस्था और प्रार्थना है। अगर कुछ है तो वो है चीखते चिल्लाते नारे, फूहड़ रामलीला, रामनवमी की हिंसात्मक झांकी, मनोरजन और नफ़रत है।

सोचिये जो श्रीराम भाइयों के लिए राजपाठ तक त्यागकर वन में चले जाते है, आज उनके नाम  साधू सन्यासी ही राजपाट का मजा लूट रहे है? जहाँ जय श्रीराम का नारा लगाकर देश में पाखंड, अंधविश्वास, कुप्रथाओं समेत अनेकों सामाजिक बुराइयों से लड़ना था,  वहां जय श्रीराम का नारा लगाकर आपस में लड़ा रहे है। बाकी आस्था की आड़ में यह सब चलता रहेगा, क्योंकि जब धर्म पर पाखंडी और धार्मिक व्यापारी कब्ज़ा कर ले तो किसी आदिपुरुस मूवी का बन जाना महज कोई संयोग नहीं होता।

AUTHOR BY- RAJEEV CHOUDHARY

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